sadasya:Gaurida2011

Wikipedia se

[डिकारे और उत्तराखंड लोक पर्व हरेला । 1]डिकारे:उत्तराखंड के लोक परंपरा की पहचान

लोक पर्व हरेला के अवसर पर देवभूमि उत्तराखंड में डिकारे या डिगारे बनाने की परंपरा रही है। घर की महिलाओं, विशेषकर बुजुर्ग के द्वारा अपनी बहू, बेटी, छोटे बच्चों के साथ मिलकर डिकारे बनाए जाते हैं। इसके बारे में बताते हुए संस्कृतिकर्मी गौरीशंकर काण्डपाल ने कहा कि, उत्तराखंड में हरेला पर्व के अवसर पर देवताओं के आह्वान के लिए शिव परिवार के समस्त सदस्यों को मिट्टी की मूर्ति ; जिन्हें स्थानीय भाषा में डिकारे कहते हैं; बनाए जाते हैं। इन बने हुए डिकारों को धूप में सुखाकर उनमें आकर्षक रंग भरते हुए उन्हें मंदिर में हरेला काटने से पूर्व स्थापित किया जाता है। उनकी पूजा-अर्चना करते हुए हरेला तथा नैवेद्य अर्पित किया जाता है। शहर हल्द्वानी के कुसुमखेड़ा निवासी पूनम काण्डपाल के द्वारा डिकारे बनाए गए। अपनी अगली पीढ़ी को यहां सांस्कृतिक विरासत हस्तांतरित करने के उद्देश्य से उन्होंने अपने पुत्र प्रणव काण्डपाल को भी डिकारे बनाने सिखाए। प्रणव के द्वारा शिव-पार्वती, शिवलिंग, नंदी महाराज एवं मोदक सहित गणेश जी के डिकारे बनाए। उनके द्वारा स्थानीय मिट्टी को गूंथकर उसमें रुई मिलाते हुए छोटी-छोटी लकड़ी की सीक के माध्यम से ढांचा तैयार किया तथा उसे मिट्टी से लीपकर शिव परिवार से जुड़े देवताओं की मूर्तियां बनाई । पहाड़ी क्षेत्रों में मिलने वाले रिंगाल के द्वारा भी यह ढांचा बनाया जा सकता है।
Cite error: <ref> tags exist for a group named "डिकारे और उत्तराखंड लोक पर्व हरेला ।", but no corresponding <references group="डिकारे और उत्तराखंड लोक पर्व हरेला ।"/> tag was found